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कत्यूरी शासक ब्रह्मदेव नेपाल में ब्रह्मदेव मंडी

Pragati Bhaarat:

अंतिम कत्यूरी शासक राजा ब्रह्मदेव थे

*जिनके नाम से पुण्यागिरी के पास काली नदी के पार नेपाल में ब्रह्मदेव मंडी भी है* उस समय पश्चिमी नेपाल मैं भी कतयुरी राजाओं का शासन था ,चंपावत पहले अल्मोड़ा जिले का तहसील था बाद में इसको पिथौरागढ़ जिले में मिला दिया गया हमने कक्षा 3 के भूगोल में अल्मोड़ा जिले की इतिहास के अंतर्गत चंपावत तहसील के बारे में पढ़ाई की,
राजा ब्रह्मदेव का किला काली कुमाऊं का सबसे प्राचीन क्षेत्र या नगर सुई में था, जहां पर अब देवदार के घने जंगल और कत्यूरी राजाओं के इष्ट सूर्य देव का मंदिर है, मानस खंड में ह्वेन सांग के आने से पूर्व छठी शताब्दी में इस क्षेत्र को ब्रह्मपुर राज्य के कत्यूरी सम्राटों के अधीन बताया गया है, तब यह क्षेत्र उत्तर कौशल क्षेत्र में आता था, उस समय मेरी बना दे सूर्यवंशी राजा *ऋतुपूर्ण* राजा का उल्लेख शास्त्रों में मिलता है, मानसखंड के बाद चंद राजाओं के आने के उपरांत कुर्वांचल नाम प्रचलित हुआ ,
वर्तमान में काली कुमाऊं चंपावत जिले में आता है,
इस जिले की हदबंदी पूर्व काली नदी उत्तर में सरयू और गंगोलीहाट पश्चिम की तरफध्यानीरौ दक्षिण की तरफ लधिया नदी जो चल्थी होते हुए पूरब की ओर बहती है ,और काली नदी में मिल जाती है,
पुरानी कथाओं के अनुसार इस क्षेत्र में देवताओं का निवास था फिर यहां पर राक्षस दैत्य बंसी लोग आने लग गए, कहते हैं दोपहर में लगभग 5000 साल पहले पांडवों की लड़ाई यहां के क्षत्रिय व खस लोगों से हुई और यह भी कहते हैं भीम और हिडिंबा का पुत्र *घटोचक* जिसको कर्ण ने मारा वह भी यही का रहने वाला था, जिस का मंदिर चंपावत से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर फूगरपहाड़ी में स्थित है स्थानीय भाषा में इसको *घटकु देवता* कहते हैं, उसके नीचे, 1 किलोमीटर की दूरी पर *हिडिंबा* का प्रसिद्ध मंदिर है ,और यह भी कहावत है घटोचक को बकरी की बलि चढ़ती है ,और बकरी का खून घटोचक के मंदिर के रास्ते अंदर ही अंदर हिडिंबा के मंदिर तक जाता है तथा मंदिर में अभी भी रक्त वर्ण का पानी निकलता है ,सुई नगर के पश्चिम की ओर *दौणकोट* है इसको खसराजा जो रावत थे ,उनके द्वारा इसका निर्माण किया गया, अब उस स्थान पर एक गांव रायकोट है तथा लोहाघाट शहर का निर्माण अंग्रेजों द्वारा किया गया, लोहावती नदी के किनारे होने के वजह से इस शहर का नाम लोहाघाट पड़ा, उपरोक्त किलों के भग्नावशेष अभी भी वहां पर विद्यमान है रावत राजा के संतान अभी भी पट्टी तल्ला देश तथा गुम देश मैं रहते हैं , दौणकोट को मेहरा और फर्त्याल की मदद से चंद राजाओं ने जीता और चंपावती नदी के किनारे संवत 953 के लगभग सोमचंद ने चंपावत शहर बसाया तथा राजगबुग्गा, किले का निर्माण किया वर्तमान में इस किले के अंदर तहसील है, कहां जाता है यह क्षेत्र कत्यूरी राजा राजा ब्रह्मदेव जी अपनी पुत्री का विवाह कुंवर सोमचंद से किया और दान में चंपावत क्षेत्र उन्हें दिया,
काली कुमाऊं का सबसे प्राचीन किला कौटलगढ़ जिसको वर्तमान में बाणासुर का किला कहते हैं,कहाजाता है यह किला बाणासुर ने अपने लिए बनाया था जब बाणासुर दैत् मारा गया उसकी लहू से निकली हुई नदी को लोहावती कहते हैं देवीधुरा बाराही देवी का मंदिर विश्व विख्यात है जहां पर रक्षाबंधन के दिन भव्य मेला लगता है जिसको श्रावणी मेला भी कहते हैं, चंपावत के पूर्व के तरफ एक बहुत बड़ा पर्वत है जिसमें कांतेश्वर महादेव का मंदिर है, यही पर भगवान विष्णु ने कुर्मी का अवतार लिया था उस जगह को कुर्मपाद कहते हैं, इसी क्षेत्र में स्वामी विवेकानंद जी द्वारा स्थापित रामकृष्ण मठ (मायावती आश्रम) भी है, यहां पर बहुत सारे मंदिर हैं, जिनमें झाली माली का मंदिर जो कत्यूरी राजाओं के कुलदेवी होने के साथ-साथ स्थानीय लोगों के भी आराध्य देवी है ,रामगंगा और सरयू नदी के संगम पर रामेश्वर मंदिर पंचेश्वर मानेसर विशेश्वर नरसिंह देवता का मंदिर ग्वेल देवता का मंदिर सिद्ध गोरख नाथ मंदिर प्रमुख हैं, चंपावत का बालेश्वर मंदिर एक हथिया नौला शिल्प कला दुर्लभ और देखने लायक है, मंदिर निर्माण शैली खजुराहो के मंदिरों से मिलती-जुलती है, ध्यानारौ मैं तल्लीरौ मल्लीरौ दो पटिया हैं यही लदिया नदी निकलती है इस क्षेत्र मैं तावे और लोहे का बहुत बड़ा उद्योग चलता था, किमखेत गांव तांबे के लिए प्रसिद्ध है, तथा लोहे के खान क्षेत्र में है,
मंगललेख मैं लोहे की खान है यहां का लोहा उत्तम श्रेणी का होता है लोहाघाट के लोहे से बने हुए बर्तन पहले पूरे कुमाऊं क्षेत्र मैं प्रसिद्ध थे ,इस क्षेत्र में दानवबंशी, बोरा औ और कृष्णायन गोत्र धारी कैड़ा राजपूत लोग ज्यादा रहते हैं,
इन्हीं वीर राजपूत लोगों की मदद से चंद राजाओं ने परगना पालीपछाऊ क्षेत्र के कैडारौ बोरारौ पट्टीयों जीती,
महाभारत काल में कुर्मांचल का उल्लेख आता है ,
कुछ इतिहासकार कौरव पांडव लोगों को कुर्मांचल का राजा मानते हैं काशीपुर का द्रोण सागर उसी काल का बताया जाता है,
उसकाल में इस क्षेत्र में राज्य करने वाली तथा तलवार भाले धनुष फिल्म पत्थरों से युद्ध करते थे वालेराजा,खस,एकासन,दीर्घबेणु,पारद,कुलिद,तंगण,परतगण, आदि पहाड़ी राजा लोग यहां पर पर्वतों के मध्य रहते थे इन राजाओं ने महाभारत में कौरवसेना के पक्ष में युद्ध किया,
द्रोणपर्व पुस्तक में इसका विवरण मिलता है
यद्यपि मैंने यह क्षेत्र पूरा घूम रखा है तथा इस लेख को लिखते समय मुझे कुछ महत्वपूर्ण जानकारी वहां के स्थानीय निवासी अवकाश प्राप्त सुपरिटेंडेंटइंजीनियर जल निगम श्री जयप्रकाश टमटा से भी प्राप्त हुई जिनका मूल गांव किमखेत जहां पर तांबे की खाने हैंउनका बहुत-बहुत धन्यवाद,
जय राजमाता जिया रानी👏👏

*
चंदन सिंह मनराल*

राजमाता जियारानी कत्यूरी समाज
हल्द्वानी

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