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राहत के बाद स्पीकर से कांग्रेस की अपील, राहुल गांधी को सदन में बोलने की दें इजाजत

Pragati Bhaarat:

राहत के बाद स्पीकर से कांग्रेस की अपील, राहुल गांधी को सदन में बोलने की दें इजाजत

मानहानि मामले में रद्द हुई कांग्रेस नेता राहुल गांधी की सदस्यता से विपक्षी नेताओं को क्या मैसेज गया है? इस मुद्दे पर कांग्रेस ही नहीं विपक्ष ने भी बीजेपी पर हमला बोला है। क्या आने वाले समय में राजनीतिक टकराव और ज्यादा बढ़ने वाला है?नीरजा चौधरी / अक्षय शुक्ला

Explained Rahul Gandhi Disqualification: मानहानि के मामले में दो साल की सजा के बाद कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की संसद सदस्यता भी खत्म हो गई। इसके बाद कांग्रेस ही नहीं समूचा विपक्ष बीजेपी पर हमलावर हो गया। बीजेपी ने भी इस मुद्दे को पिछड़ों के अपमान से जोड़ दिया। तो क्या होगा इसका असर? क्या आने वाले समय में राजनीतिक टकराव और ज्यादा बढ़ने वाला है? इसी पर बात करने के लिए आज हमारे साथ हैं वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी।

नीरजा जी, कैसे देखती हैं आप इस पूरे घटनाक्रम को? देश की राजनीति पर इसका क्या असर होने वाला है?

देखिए, पॉलिटिकल सीजन शुरू हो गया है। तो हर सप्ताह हम देखेंगे कि कुछ न कुछ बड़ी चीज होती चली जाएगी। राहुल गांधी का डिसक्वालिफाई होना, दो साल की सजा सुनाया जाना, ये एक बड़ी चीज उभर कर आई है, जो कांग्रेस के लिए झटका है, राहुल गांधी के लिए झटका है और विरोधी पार्टियों के लिए भी बहुत बड़ा सेटबैक है। और विरोधी पार्टियों के लिए जो स्पेस कम होती जा रही थी, उसको और भी धक्का लगा है इससे। और जो विरोधी पार्टियों के लोग हैं, नेता हैं अब उनको 10 बार, 100 बार सोचना पड़ेगा कि हम क्या बोल रहे हैं। इसका असर बहुत बड़ा है, सिर्फ राहुल तक सीमित नहीं है।

जी, अगर आप कह रहे हैं कि विपक्ष के पास स्पेस कम हो गया, तो तस्वीर का दूसरा पहलू ये भी आ रहा है कि जो विपक्ष नेतृत्व के सवाल पर बिखरा हुआ था। राहुल गांधी की सदस्यता खत्म होने के साथ ही पूरा विपक्ष एकजुट नजर आ रहा है। और कांग्रेस के साथ खड़ा दिख रहा है। तो क्या विपक्ष को एकजुट करने का एक बड़ा मुद्दा मिल गया है?

देखिए कि ये भी स्थिति की विडंबना ही है। विपक्ष दो गुटों में बंटा हुआ था। एक तरफ वो पार्टी थी जिनकी अलाएंस थी कांग्रेस की सरकार चलाने के लिए, वो एक तरफ थी जो कांग्रेस की लीडरशिप को मान रही थी, कांग्रेस से बाचतीच चल रही थी। दूसरी तरफ वो पार्टियां थीं, जो कांग्रेस पर निर्भर नहीं थीं, अपनी सरकार चलाने के लिए, जैसे कि केजरीवाल दिल्ली में, ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में और बीआरएस तेलंगाना में जो चंद्रशेखर राव की पार्टी है। तो कांग्रेस से हाथ मिलने में अनमनापन था उनका। और वो कांग्रेस की लीडरशिप में बिलकुल बात नहीं कर रहे थे कि विपक्षी एकता को लेकर आगे बढ़ेंगे। अखिलेश यादव भी उसमें शामिल थे, जो समाजवादी पार्टी (सपा) के हैं और सपा उत्तर प्रदेश की बड़ी पार्टी है। कहीं न कहीं, वो चीज अब गौण होती दिख रही है। अगर गांधी का नुमाइंदा लीडरशिप रोल में नहीं है कांग्रेस के तो सब पार्टियां थर्ड फ्रन्ट की बजाय इकट्ठा होने की पहल कर सकती हैं।

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