आज पूरे देश में महाशिवरात्रि मनाई जा रही है। महादेव को प्रसन्न करने और उनकी आराधना के लिए महाशिवरात्रि का त्योहार बहुत ही खास माना जाता है। आज घर-घर और गली-गली हर-हर महादेव की गूंज सुनाई दे रही है। हिंदू पंचांग के अनुसार हर वर्ष फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है।
Mahashivratri: जानिए महाशिवरात्रि का महत्व
शिवपुराण में महाशिवरात्रि व्रत का महत्व बताया गया है। इस दिन व्रत करने और भगवान शिव की पूजा और मंत्रों के जाप से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन भोलेनाथ की विधि-विधान के पूजा-अर्चना करें। शास्त्र के नियमों के अनुसार शिव मंत्रों का जाप करें।
Shivratri: भोलेनाथ को शमी पत्र भी प्रिय है
शिवजी की पूजा-उपासना में शमी के पत्रे को भी शामिल किया जाता है। शमी के पत्ते शनिदेव को बहुत प्रिय है, लेकिन ये पत्ते शिवलिंग पर भी चढ़ाए जाते हैं। शिवलिंग पर अभिषेक करने के बाद शमी के पत्ते चढ़ाएं। ऐसा करने से भोलेनाथ के साथ-साथ शनिदेव की कृपा भी बनी रहेगी।
Shivratri: भोलेभंडारी को क्यों चढ़ाते हैं भांग ?
भगवान भोलेनाथ को भांग और धतूरा अर्पित किया जाता है। दरअसल इसी पीछे धार्मिक मान्यता है कि भगवान शिव हर तरह के मन के विकार और बुराईयों को दूर करते हैं। इस कारण से भांग शिव जी को अर्पित की जाती है। वहीं भांग एक औषधि का काम भी करती है, जब भगवान शिव ने विषपान किया था तब इसके प्रभाव से भगवान का पूरा शरीर तपने लगा था। तब भगवान के इस ताप को कम करने के लिए भांग के पत्ते सभी देवी-देवताओं ने शिवजी पर चढ़ाए थे।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव को बेलपत्र बहुत ही प्रिय होता है। बेलपत्र को भगवान महादेव के तीनों नेत्रों का प्रतीक माना गया है। शिवजी की पूजा में भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाने से व्यक्ति की हर तरह की सुख-समृद्धि और मनोकामना जरूर पूरी होती है। इस कारण से शिवजी की पूजा में बेलपत्र को शामिल किया जाता है।
Mahashivratri 2023: इस बार महाशिवरात्रि और शनि प्रदोष का विशेष संयोग
आज महाशिवरात्रि और शनि प्रदोष व्रत दोनों का ही संयोग है। महाशिवरात्रि और प्रदोष व्रत दोनों ही महादेव को समर्पित होने वाला त्योहार है। प्रदोष व्रत और महाशिवरात्रि के संयोग से भगवान शिव की पूजा करना बहुत ही शुभ और लाभदायी रहेगा।
भगवान शिव की आरती
ओम जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव अर्द्धांगी धारा।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे। हंसानन गरूड़ासन
वृषवाहन साजे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
मधु कैटव दोउ मारे, सुर भयहीन करे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
लक्ष्मी, सावित्री पार्वती संगा।
पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
पर्वत सोहें पार्वतू, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
जया में गंग बहत है, गल मुण्ड माला।
शेषनाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवान्छित फल पावे।।
ओम जय शिव ओंकारा।। ओम जय शिव ओंकारा।।