सुप्रीम कोर्ट कॉर्बेट नेशनल पार्क में अवैध निर्माण व बफर क्षेत्र में टाइगर सफारी स्थापित करने से जुड़े मामले में सुनवाई कर रही थी। पीठ ने पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) को नोटिस जारी कर पूछा, आखिर राष्ट्रीय उद्यानों में सफारी बनाने की क्या जरूरत है। इन्हें 15 जनवरी तक जवाब देना है।
सुप्रीम कोर्ट ने बाघों और वन्यजीवों के अभयारण्यों और राष्ट्रीय उद्यानों के मुख्य क्षेत्र में किसी भी तरह के निर्माण पर रोक लगा दी है। शीर्ष अदालत ने बुधवार को कहा, इन जगहों पर चिड़ियाघर या सफारी बनाने का कोई औचित्य नहीं है। इसे बढ़ावा नहीं दे सकते। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ कॉर्बेट नेशनल पार्क में अवैध निर्माण व बफर क्षेत्र में टाइगर सफारी स्थापित करने से जुड़े मामले में सुनवाई कर रही थी।
पीठ ने पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) को नोटिस जारी कर पूछा, आखिर राष्ट्रीय उद्यानों में सफारी बनाने की क्या जरूरत है। इन्हें 15 जनवरी तक जवाब देना है। पीठ गुज्जर सोत, पखरू ब्लॉक, सोनानदी रेंज, कालागढ़ डिवीजन, कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में टाइगर सफारी की स्थापना के नाम पर पेड़ों की अवैध कटाई से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।
6,093 पेड़ काटे जाने पर पीठ ने जताई नाराजगी
पीठ को सुनवाई के दौरान बताया गया कि निर्माण कार्य के लिए बाघ अभयारण्य में 6,093 पेड़ काटे गए। इस पर नाराजगी जताते हुए पीठ ने पूछा, किस अधिकारी ने ऐसा किया। पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल बलबीर सिंह ने कहा कि वह बाघ अभयारण्य की जांच कर अदालत को सूचित करेंगे।
सीईसी ने भी दिया था दिशा-निर्देशों में संशोधन करने का सुझाव
सुप्रीम कोर्ट से गठित केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) ने भी अपनी रिपोर्ट में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से बाघों और वन्यजीवों के अभयारण्यों के भीतर चिड़ियाघर और सफारी स्थापित करने से जुड़े दिशा-निर्देशों में संशोधन करने या उन्हें वापस लेने का सुझाव दिया था। समिति का मानना था कि इन स्थलों का इस्तेमाल पर्यटक गतिविधियों के लिए नहीं किया जाना चाहिए।
सीईसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि सफारी और चिड़ियाघर की स्थापना से वन्यजीव पर्यटन को बढ़ावा देने और लुप्तप्राय प्रजातियों के बारे में लोगों को शिक्षित करने का महत्वपूर्ण घटक है, लेकिन मुख्य क्षेत्रों में इन्हें खोलने से जीवों की जान और पारिस्थितिकी तंत्र को खतरा हो सकता है। वन्यजीव शिक्षा लुप्तप्राय प्रजातियों की जान की कीमत पर नहीं होना चाहिए।