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25 साल से सीएम योगी कर रहे नेतृत्व: आपसी सौहार्द की मिसाल है नृसिंह शोभायात्रा, 1944 में हुई थी शुरुआत

साफ-सुथरी होली के लिए नानाजी का प्रयास रंग लाया और यात्रा परिष्कृत हो गई, लेकिन उसे भव्य स्वरूप देना संभव नहीं हो पा रहा था। ऐसे में नानाजी ने इसके लिए नाथ पीठ के तत्कालीन पीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ से संपर्क साधा। दिग्विजयनाथ ने उनके आमंत्रण को स्वीकार किया और यह जिम्मेदारी अपने उत्तराधिकारी अवेद्यनाथ को सौंपीहोली के दिन शहर में निकलने वाली नृसिंह शोभायात्रा आपसी सौहार्द की मिसाल है।

इस यात्रा में श्रद्धालु जमकर होली खेलते हैं। होली गीत गूंजते हैं। काले व हरे रंग का प्रयोग नहीं होता। केवल लाल-पीले रंगों से ही होली खेली जाती है। इसका श्रेय नानाजी देशमुख को जाता है।

शोभायात्रा को आयोजित करने वाली होलिकोत्सव समिति के महामंत्री मनोज जालान बताते हैं कि नानाजी देशमुख 1939 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक बनकर गोरखपुर आए थे।

उस समय घंटाघर से निकलने वाली भगवान नृसिंह की शोभायात्रा में कीचड़ फेंकना, लोगों के कपड़े फाड़ देना, कालिख पोत देने के साथ ही काले व हरे रंगों का लोग अधिक प्रयोग करते थे। साफ-सुथरे तरीके से होली का पर्व मनवाने के लिए 1944 में नानाजी ने कुछ युवकों को एकत्रित किया और बदलाव की दिशा में पहल की।

शोभायात्रा के लिए हाथी का इंतजाम किया गया, महावत को बताया गया कि जहां काला या हरा रंग का ड्रम दिखे, उसे हाथी को इशारा कर गिरवा दें, ऐसा दो-तीन साल किया गया। कुछ अराजक लोगों से युवकों को हाथापाई भी करनी पड़ी। धीरे-धीरे भगवान नृसिंह की रंगभरी शोभायात्रा में केवल रंग रह गए और उसमें भी काला व हरा नहीं। धीरे-धीरे इसकी छाप पूरे शहर में पड़ी।

गोरक्षपीठ से शोभायात्रा को मिला भव्य स्वरूप

साफ-सुथरी होली के लिए नानाजी का प्रयास रंग लाया और यात्रा परिष्कृत हो गई, लेकिन उसे भव्य स्वरूप देना संभव नहीं हो पा रहा था। ऐसे में नानाजी ने इसके लिए नाथ पीठ के तत्कालीन पीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ से संपर्क साधा। दिग्विजयनाथ ने उनके आमंत्रण को स्वीकार किया और यह जिम्मेदारी अपने उत्तराधिकारी अवेद्यनाथ को सौंपी।

गुरु के निर्देश पर अवेद्यनाथ 1950 से शोभायात्रा का नेतृत्व करने लगे। धीरे-धीरे संघ की यह शोभायात्रा नाथ पीठ से अनिवार्य रूप से जुड़ गई। योगी आदित्यनाथ को जब महंत अवेद्यनाथ ने जब अपना उत्तराधिकारी बनाया तो इस यात्रा की भव्यता को कायम रखने की जिम्मेदारी भी उन्हें ही सौंप दी।

1998 से योगी आदित्यनाथ यात्रा का नेतृत्व करने लगे तो उनके उत्सवी स्वभाव के चलते शोभायात्रा ने भव्यतम स्वरूप ले लिया और इसमें शहर के सभी प्रमुख लोग भागीदारी करने लगे। योगी के सीएम बनने के बाद ये शोभायात्रा देश-विदेश में मशहूर हो चुकी है।

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