Home राज्य MP Election: 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद कितनी बदली मध्य प्रदेश की सियासत, इस बार किसका दावा कितना मजबूत?

MP Election: 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद कितनी बदली मध्य प्रदेश की सियासत, इस बार किसका दावा कितना मजबूत?

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MP Election: 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद कितनी बदली मध्य प्रदेश की सियासत, इस बार किसका दावा कितना मजबूत?

Pragati Bhaarat:

मध्यप्रदेश में इसी साल नवंबर-दिसंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। भाजपा, कांग्रेस समेत सभी दल चुनावी तैयारियों में जुट गए हैं। चुनाव के पहले भाजपा ने महिलाओं को हर महीने एक हजार देने के लिए लाड़ली बहना योजना का ऐलान किया है।

पार्टी इस योजाना के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के चेहरे के दम पर सत्ता वापसी की उम्मीद कर रही है। वहीं, कांग्रेस एक बार फिर किसानों की कर्ज माफी के साथ ही 500 रुपये में एलपीजी सिलेंडर देने का वादा करके फिर से सत्ता में आने की उम्मीद कर रही है। वहीं, आम आदमी पार्टी भी भोपाल में फ्री बिजली की घोषणा करके राज्य में चुनावी बिगुल बजा दिया है।

बीते पांच साल में यह राज्य दो सरकारें देख चुका है। 2018 में आए चुनाव नतीजों के बाद राज्य में 15 साल बाद कांग्रेस ने सरकार बनाई। कमलनाथ राज्य के मुख्यमंत्री बने। हालांकि, राज्य की कमलनाथ सरकार 15 महीने तक ही चल सकी। 15 महीने बाद एक बार फिर राज्य में भाजपा की सत्ता में वापसी हुई। आइये जानते हैं राज्य में बीते पांच साल में हुए सियासी उठापटक के बारे में

2018 में नतीजे क्या रहे थे?
मध्यप्रदेश में पिछला विधानसभा चुनाव कई मायनों में बेहद रोमांचक रहा था। 230 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस को बहुमत से दो कम 114 सीटें मिलीं थीं। वहीं, भाजपा 109 सीटों पर आ गई। हालांकि, यह भी दिलचस्प था कि भाजपा को 41% वोट मिले जबकि कांग्रेस को 40.9% वोट मिला था। बसपा को दो जबकि अन्य को पांच सीटें मिलीं। नतीजों के बाद कांग्रेस को बसपा, सपा और अन्य का साथ मिलकर सरकार बनाई। इस तरह से राज्य में 15 साल बाद कांग्रेस के नेतृत्व में सरकार बनी और कमलनाथ मुख्यमंत्री बने।

चुनाव के दो साल बाद हुआ बड़ा सियासी ड्रामा
दिसंबर 2018 से मार्च 2020 तक कांग्रेस ने सरकार चलाई। इस दौरान कई मौके आए जब पार्टी के नेताओं ने अपनी सरकार पर वादे पूरे करने के लिए दबाव बनाया। 15 महीने पूरे होते-होते कमलनाथ सरकार की सत्ता से विदाई की पटकथा तैयार हो चुकी थी। 2-3 मार्च की रात अचानक मध्य प्रदेश के कई विधायक गुरुग्राम के एक होटल में जमा हुए। इन विधायकों में सपा विधायक राजेश शुक्ला (बबलू), बसपा के संजीव सिंह कुशवाह और रामबाई, कांग्रेस के ऐंदल सिंह कंसाना, रणवीर जाटव, कमलेश जाटव, रघुराज कंसाना, हरदीप सिंह, बिसाहूलाल सिंह और निर्दलीय सुरेंद्र सिंह शेरा शामिल थे। इसी होटल में भाजपा के नरोत्तम मिश्रा, रामपाल सिंह और अरविंद भदौरिया भी नजर आए।

डैमेज कंट्रोल करने पहुंचे जयवर्धन सिंह और जीतू पटवारी
मामला बिगड़ता देख दिग्विजय सिंह उनके मंत्री बेटे जयवर्धन सिंह, जीतू पटवारी डैमेज कंट्रोल में जुट जाते हैं। पटवारी और जयवर्धन भी उसी होटल में पहुंच जाते हैं जहां, बागी विधायक जमा हुए थे। करीब दो घंटे के ड्रामे के बाद दोनों रामबाई और तीन कांग्रेस विधायक ऐंदल सिंह कंसाना, रणवीर जाटव, कमलेश जाटव को लेकर लौटे। वहीं, रघुराज कंसाना, हरदीप सिंह डंग, बिसाहूलाल सिंह, राजेश शुक्ला, संजीव सिंह कुशवाह और सुरेंद्र सिंह बेंगलुरु पहुंच गए।

दो हफ्ते चले ड्रामा सिंधिया ने हाथ छोड़ थाम कमल
पांच मार्च 2020 को मध्य प्रदेश के सियासी ड्रामे का केंद्र बेंगलुरू हो गया। दो हफ्ते के भीतर यहां बागी विधायकों की संख्या बढ़ते-बढ़ते 22 पहुंच गई। इस बीच 10 मार्च 2020 को, कांग्रेस के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया अचानक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत के गृह मंत्री अमित शाह से मिलने दिल्ली आए। इस मुलाकात के बाद उन्होंने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया। अगले दिन यानी 11 मार्च को सिंधिया ने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा की उपस्थिति में भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया।

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